यूपी पुलिस का नया कारनामा: मुर्दे को बनाया गवाह, जाने पूरा मामला।

यूपी पुलिस

यूपी पुलिस का एक और अनोखा कारनामा सामने आया है, जिसने विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ताजा मामला हरदोई जिले के बेनीगंज कोतवाली क्षेत्र का है, जहां एक दारोगा ने एफआईआर दर्ज नहीं की और जब पीड़ित ने उच्च अधिकारियों से शिकायत की, तो उसने मुर्दे को गवाह बनाकर शिकायत का फर्जी निस्तारण कर दिया। इस मामले के उजागर होने के बाद दारोगा को निलंबित कर दिया गया है और विभागीय जांच के आदेश दिए गए हैं।

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घटना का विवरण

बेनीगंज कस्बे के सिकिलन टोला निवासी रंजीत कुमार उर्फ बंटी सोनी ने बताया कि 21 जून को कुछ लोगों ने उनके साथ मारपीट की थी। वह शिकायत दर्ज कराने के लिए थाने पहुंचे, लेकिन पुलिस ने उनकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया और उन्हें ही थाने में बैठा लिया। इसके बाद आरोपितों ने 22 जून की सुबह उनके घर पर भी हमला कर दिया।   Join YouTube ▶️

पैसे की मांग

बंटी सोनी के अनुसार, जब उनकी पत्नी शिकायत लेकर थाने पहुंची तो पुलिस ने 20 हजार रुपये की मांग की। रुपये देने के बाद ही बंटी को थाने से छोड़ा गया, लेकिन उनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। जब उन्होंने आइजीआरएस (आईजीआरएस) पर शिकायत की, तो मामले की जांच के लिए बेनीगंज कोतवाली के दारोगा रामशंकर पांडेय को जिम्मेदारी सौंपी गई।



फर्जी गवाही

दारोगा रामशंकर पांडेय ने बिना किसी साक्ष्य और जांच के, फर्जी आख्या लगाकर बंटी सोनी को ही दोषी बना दिया। इसके लिए उन्होंने सुरेंद्र नामक एक व्यक्ति को गवाह बनाया, जिसका कहना था कि बंटी सोनी पेशबंदी में शिकायत कर रहे हैं और उनकी शिकायत फर्जी है। बंटी सोनी ने बताया कि सुरेंद्र की मौत हो चुकी है, लेकिन दारोगा ने उन्हें ही गवाह बना दिया।

उच्चाधिकारियों से शिकायत

बंटी सोनी ने इस फर्जी निस्तारण की शिकायत उच्चाधिकारियों से की। इस पर एसपी केसी गोस्वामी ने सीओ संडीला शिल्पा कुमारी को मामले की जांच के लिए भेजा। जांच में भी पुष्टि हुई कि दारोगा ने मृतक सुरेंद्र को गवाह बनाया था। एएसपी नृपेंद्र कुमार ने बताया कि सीओ की जांच में इस बात की पुष्टि होने पर दारोगा रामशंकर पांडेय को निलंबित कर दिया गया है और मामले की विभागीय जांच के आदेश दिए गए हैं।

यूपी पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल

इस घटना ने एक बार फिर से यूपी पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब एक पीड़ित व्यक्ति अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए पुलिस थाने पहुंचता है, तो उससे 20 हजार रुपये की मांग की जाती है और उसकी शिकायत को फर्जी बताकर निस्तारित कर दिया जाता है। यह घटना न केवल पुलिस की लापरवाही को दर्शाती है, बल्कि उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को भी उजागर करती है।

निष्कर्ष

इस घटना ने पुलिस विभाग के भीतर सुधार की आवश्यकता को उजागर किया है। ऐसे मामलों में जहां पीड़ित को न्याय पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है, वहां प्रशासन को सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। इस मामले में दारोगा रामशंकर पांडेय को निलंबित करना एक सही कदम है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।

पुलिस विभाग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी मामलों की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच हो और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। साथ ही, पीड़ितों को न्याय मिल सके, इसके लिए पुलिस अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए। यह घटना एक चेतावनी है कि पुलिस विभाग को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करना होगा ताकि आम जनता का विश्वास कायम रह सके और उन्हें न्याय मिलने में किसी प्रकार की बाधा न आए।
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