नई दिल्ली। एक जुलाई से भारतीय न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव होने जा रहे हैं। 1860 में बनी भारतीय दंड संहिता (IPC), 1898 में बनी आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC), और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की जगह तीन नए कानून लागू होने जा रहे हैं। ये नए कानून हैं भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम। इन कानूनों के लागू होने से न्याय प्रणाली में कई अहम बदलाव आएंगे, जिनका प्रभाव छोटे अपराधियों से लेकर बड़े दोषियों तक पर पड़ेगा।
किन मामलों में नहीं कर सकेंगे अपील?
नए कानूनों के तहत, कुछ मामलों में दोषी को सजा मिलने पर ऊपरी अदालत में अपील करने का अधिकार नहीं होगा। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 417 के अनुसार, यदि हाईकोर्ट से किसी दोषी को 3 महीने या उससे कम की जेल या 3000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों की सजा मिलती है, तो इसे ऊपरी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसके अलावा, सेशन कोर्ट से 3 महीने या उससे कम की जेल या 200 रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा मिलने पर भी अपील नहीं की जा सकती। मजिस्ट्रेट कोर्ट से 100 रुपये का जुर्माना मिलने पर भी अपील का अधिकार नहीं होगा। हालांकि, यदि किसी अन्य सजा के साथ-साथ यह सजा मिलती है, तो इसे चुनौती दी जा सकती है।
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संपत्ति जब्ती और कुर्की को लेकर नए प्रावधान
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 107 में आरोपी की संपत्ति की जब्ती और कुर्की को लेकर नए सख्त प्रावधान जोड़े गए हैं। धारा 107 (1) के तहत, यदि जांच कर रहे पुलिस अधिकारी को लगता है कि किसी संपत्ति को अपराध की आय या आपराधिक गतिविधि के जरिए कमाया गया है, तो एसपी या पुलिस कमिश्नर ऐसी संपत्ति की कुर्की के लिए कोर्ट से अनुरोध कर सकता है। धारा 107 (2) के तहत, अदालत आरोपी को नोटिस जारी करेगी और 14 दिन के भीतर जवाब मांगेगी कि उसकी संपत्ति की कुर्की का आदेश क्यों न दिया जाए। यदि वही संपत्ति किसी और के नाम पर भी है, तो अदालत उसे भी नोटिस जारी करेगी।
कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद और आरोपी को सारे मौके देने के बाद अदालत अपने विवेक के आधार पर संपत्ति की कुर्की के आदेश पर फैसला कर सकती है। अगर आरोपी 14 दिन के भीतर जवाब नहीं देता है या कोर्ट में पेश नहीं होता है तो अदालत कुर्की का आदेश दे सकती है। धारा 107 (6) के अनुसार, यदि अदालत को लगता है कि किसी संपत्ति को आपराधिक गतिविधि के जरिए कमाया गया है, तो वह ऐसे अपराध से प्रभावित लोगों में संपत्ति बांटने का आदेश भी दे सकती है। संपत्ति बांटने की प्रक्रिया 60 दिन के भीतर की जाएगी। यदि संपत्ति का कोई दावेदार नहीं है या बंटवारे के बाद भी कुछ संपत्ति बचती है तो उस पर सरकार का हक हो जाएगा।
कैदियों के लिए राहत के प्रावधान
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में जेल में बढ़ती कैदियों की संख्या को कम करने के लिए भी प्रावधान किए गए हैं। धारा 479 के तहत, यदि कोई अंडर ट्रायल कैदी अपनी एक तिहाई से ज्यादा सजा जेल में काट चुका है, तो उसे जमानत पर रिहा किया जा सकता है। यह राहत केवल पहली बार अपराध करने वाले कैदियों को ही मिलेगी। उम्रकैद की सजा वाले अपराधियों को यह राहत नहीं मिलेगी।
सजा माफी को लेकर भी बदलाव किए गए हैं। सजा-ए-मौत पाए कैदियों की सजा को उम्रकैद में बदला जा सकता है। उम्रकैद की सजा वाले दोषियों की सजा को 7 साल की जेल में बदला जा सकता है। 7 साल या उससे ज्यादा की सजा पाए दोषियों की सजा को 3 साल की जेल में बदला जा सकता है, जबकि 7 साल या उससे कम की सजा वाले दोषियों को जुर्माने की सजा सुनाई जा सकती है।
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नए कानूनों का उद्देश्य
इन नए कानूनों का मुख्य उद्देश्य भारतीय न्याय प्रणाली को अधिक प्रभावी और तेज बनाना है। छोटे-मोटे अपराधों में अपील की सीमा को कम करके अदालतों पर से बोझ कम करने का प्रयास किया गया है। वहीं, संपत्ति जब्ती और कुर्की के प्रावधानों को सख्त करके अपराधियों की संपत्ति को कानूनी रूप से जब्त करने का मार्ग प्रशस्त किया गया है।
कैदियों को राहत देने के प्रावधानों का उद्देश्य जेलों में बढ़ती भीड़ को कम करना और अंडर ट्रायल कैदियों को जल्दी रिहा करना है, ताकि वे लंबे समय तक बिना दोषी साबित हुए जेल में न रहें।
इन नए कानूनों के लागू होने के बाद, भारतीय न्याय प्रणाली में एक नया अध्याय शुरू होने जा रहा है, जो न्याय प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, सटीक और तेज बनाएगा। यह बदलाव न्याय पाने के अधिकार को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।