नई दिल्ली: ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज का असर अब पूरी दुनिया में दिखाई दे रहा है, और इसका प्रभाव केवल इंसानों की सेहत पर ही नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। यूरोपीय जलवायु एजेंसी कॉपरनिकस के आंकड़ों के अनुसार, मई 2024 अब तक का सबसे गर्म मई का महीना रहा है। इस साल न केवल दिन बल्कि रातें भी असामान्य रूप से गर्म रही हैं, जो इंसानों के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं।
हीटवेव का बढ़ता प्रकोप
भारत में इस बार हीटवेव ने कई सालों के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। हीटवेव के कारण 25000 से अधिक लोग बीमार हो गए थे। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले सालों में हीटवेव का प्रकोप और भी बढ़ सकता है। नीति निर्माताओं को अब गर्मी से निपटने का एक्शन प्लान बनाते समय रात की गर्मी को भी ध्यान में रखना होगा। इस साल पहली बार भारत में रात का तापमान 37 डिग्री को पार कर गया।
गर्म रातों का स्वास्थ्य पर असर
शोध में पाया गया है कि गर्म रातें नींद को प्रभावित कर सकती हैं। डेनमार्क के शोधकर्ताओं के अनुसार, कम आय वाले देशों में खासकर बुजुर्गों और महिलाओं की नींद पर तापमान का गलत प्रभाव पड़ता है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अगर ऐसा ही रहा तो इस सदी के अंत तक प्रत्येक व्यक्ति की प्रति वर्ष नींद में 50 से 58 घंटे तक की कमी आ जाएगी। जब दिन गर्म होते हैं, तो अपेक्षाकृत ठंडी रातें मानव शरीर को ठंडा होने का मौका देती हैं। लेकिन जब रातें गर्म होती हैं, तो यह प्रक्रिया नहीं हो पाती और शरीर पर गर्मी का तनाव (हीट स्ट्रेस) बढ़ जाता है।
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हीटवेव का सीधा असर सेहत और GDP पर
गर्म दिनों की संख्या बढ़ने का सीधा असर सेहत और जीडीपी पर भी पड़ता है। भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में गर्म दिनों की संख्या बढ़ गई है। हाल ही में सऊदी अरब में भी हीटवेव से बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई। देश की सीनियर पर्यावरणविद सीमा जावेद के अनुसार, जब गर्म दिनों की संख्या ज्यादा हो जाती है तो सबसे ज्यादा प्रभावित लोग रीयल इस्टेट और कारखानों में काम करने वाले होते हैं। हीटवेव के बीच खेत में काम करने वाले खेतिहर मजदूर भी इसकी चपेट में आ जाते हैं, जिससे जीडीपी पर भी प्रभाव पड़ता है।
ग्लोबल वार्मिंग को नहीं रोका गया तो क्या होगा?
विशेषज्ञों का दावा है कि क्लाइमेट चेंज लगातार हो रहा है। मौसम का पैटर्न अप्रत्याशित रूप से बदल रहा है। सीमा जावेद बताती हैं कि अब ठंड के बाद वसंत नहीं आ रही, सीधे गर्मी का मौसम आ रहा है। अचानक बदलते मौसम को शरीर सह नहीं पाता है, जिससे कमजोर इम्यूनिटी वाले श्रमिक, किसान और दिहाड़ी मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग को अगर नहीं रोका गया, तो इंसान अगली विलुप्ति की कगार पर खड़ा हो सकता है।
इस प्रकार, क्लाइमेट चेंज के बढ़ते खतरों को समझना और उन पर नियंत्रण पाना बेहद आवश्यक हो गया है, ताकि न केवल मानव स्वास्थ्य बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी बचाया जा सके।